Saturday, February 4, 2017

थोथा ज्ञान , आधा आंगन

देखो वक्त ये खूब है  ,
थोथा ज्ञान , बजता ढपली ,
की ही  धूम  है ।

हर कुछ , यहाँ जो दीखता है ,
एकमुस्त वही पैमाना बन
इस वक्त यहाँ  बिकता है।

समता असमता की बात तो  कल की  ,
ज्ञान अज्ञान का तौल,
बात है बेमानी।
आलास ही है, आज सुहानी।

आधा गगरी , आधा आंगन ,
आधा सत्य ,आधा मिथ्या ,
अनुयायी हर शख्स है इसका।

सपने हकीकत का आधार,
थाप है , उपभोग का।
अज्ञान की स्वरबद्ध गूंज,
एक सच है सौ झूठ का।

ये देख सब ,
हृदय की कम्पन्न ,
सृजनता का दर्पण ,
ठहर रहा है।
चारो ओर अज्ञान की प्रतिध्वनि ,
सुन ,
अंधियारे अनुयुग में,
इंसान   मेरा , कुछ सहम रहा है।

पिकाचु




1 comment: