भूख ,गरीबी , शोषण ,
बिकता नहीं ,
शून्य समाज में ज्वलंत विषय,
दिखता नहीं।
तड़पता , बिलखता ,
जमी पे पड़ा ,
इंसान है या जानवर ,
कोई समझता नहीं।
मौसम , चाहे सर्द हो या गर्म ,
तपीश या कंपकपी ,
नंगे पैर , फटेहाल , कौन।
सोच ही हवा है।
मजा है , कुछ का , इन्हें ,
गर्म , सर्द का फर्क है कहाँ।
दौड़ता है बैठा इंसान गाड़ियों में ,
आबोहवा, इसे कहा दीखता।
रोता हुआ इंसान , सर्वत्र है।
हरे टाट के पीछे छिपा ,
वक्त से परे ढकेलता ,
सियासत है कैसा।
सादिया बीती , सियासत न गई।
वसूला महसूल परिवर्तन को ,
आशियाना, अस्पताल , रोजी रोटी को ।
रहे वही के वही ,
कर रहे गुलामी ,
कल थे सामंत ,आज है पूंजीपति।
कैसा लाईलाज मर्ज है ,
कोख से जन्मा सिर्फ अपना , परे सब पराये।
सोच है इंसान है या जानवर ,
सोच है ये कैसा।
बोलता जो इंसान , उसे कोई सुनता नही।
सुनो मत , देखो मत , चुप रहो।
न जागने की कसम खाई तो क्या कर लेगा कोई।
चकाचौंध , ही बिकता यहाँ , बाकि सब गौण।
पिकाचु
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