बैठे हुए लिखते है, किस्मत ,
चंद मेहरबान।
गिरते हुए उठाने को बैठे है,
चन्द मेहरबान।
पढ़ा आज ,
किसानों की जमी होती है बंजर।
भूखे है , नंगे है , मरते है , चिल्लाते है ,
फिर भी ,
बैठे है कुछ, भद्र ,
लिखने को किस्मत ,
सूली पे लटके ,
इन इंसानो की किस्मत ।
देश है अपना ,
लोग है अपने ,
सियासत है उनकी ,
दुखिया है कौन , मरता है है कौन ,
सब है गौण।
पूंजी ही बोलता ,
पूंजी ही दौड़ता ,
पूंजी के सामने ,
सारी नीति है मौन।
लिखते है कुछ ,
प्यार , मोहबत ,
हारे हुए ,तराने अफ़साने के।
सिमटी , है , तमन्ना ,
बस महबूबा की।
खोये है कुछ ,
सामानों की दुकानों की,
रौनक बढ़ाने।
जनता भी ऐसी ,
भद्र भी ऐसे , युवा भी ऐसे ,
फिर ,
जुआ कौन खेले ,
ब्यार बदलाव की,
भई हो कैसे।
लिखता हु मैं , डरता हु मैं ,
सहमता हु मैं।
घबराता है मन ,
रहने को संग ,
सियासती की मस्ती में खोये हुए ,
शमशानो की बस्ती में।
चलो हम तुम कुछ करते है ,
पूंजी -सियासत की गठजोड़ को ,
मिलकर बदलते है।
चलो हम तुम कुछ करते है।
पिकाचु
चंद मेहरबान।
गिरते हुए उठाने को बैठे है,
चन्द मेहरबान।
पढ़ा आज ,
किसानों की जमी होती है बंजर।
भूखे है , नंगे है , मरते है , चिल्लाते है ,
फिर भी ,
बैठे है कुछ, भद्र ,
लिखने को किस्मत ,
सूली पे लटके ,
इन इंसानो की किस्मत ।
देश है अपना ,
लोग है अपने ,
सियासत है उनकी ,
दुखिया है कौन , मरता है है कौन ,
सब है गौण।
पूंजी ही बोलता ,
पूंजी ही दौड़ता ,
पूंजी के सामने ,
सारी नीति है मौन।
लिखते है कुछ ,
प्यार , मोहबत ,
हारे हुए ,तराने अफ़साने के।
सिमटी , है , तमन्ना ,
बस महबूबा की।
खोये है कुछ ,
सामानों की दुकानों की,
रौनक बढ़ाने।
जनता भी ऐसी ,
भद्र भी ऐसे , युवा भी ऐसे ,
फिर ,
जुआ कौन खेले ,
ब्यार बदलाव की,
भई हो कैसे।
लिखता हु मैं , डरता हु मैं ,
सहमता हु मैं।
घबराता है मन ,
रहने को संग ,
सियासती की मस्ती में खोये हुए ,
शमशानो की बस्ती में।
चलो हम तुम कुछ करते है ,
पूंजी -सियासत की गठजोड़ को ,
मिलकर बदलते है।
चलो हम तुम कुछ करते है।
पिकाचु
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