Sunday, February 26, 2017

मैं वफ़ा हु बेवफा का


मैं वफ़ा हु बेवफा का ,
गमजदा हु बेवफा से  ,
खफा हु खुद मैं  ,वफ़ा क्योंकि, बेवफा से ।

काफिर हो गया हु,
मैं ,
बेवफा की दिलफरोशी से।

हाल  ऐ दिल ,
खुद की बयाँ कर रहा हु ,
इंतिहाँ इस सदा ,की, जुबाँ कर रहा हु।

बेवफा की मंजर में, चमन ये गुलिसिता की  ,
दगा ऐसा जालीम ने मुझको ,
कयामत के जलवे से ,जिंदा ही,
रूबरू करा दी।

जख्म उस बेवफा की, दिल में छिपाये हुए ,
फिर रहा हु मैं, दर बदर, ठोकर खाता।

फरेबी से  इकरार,इजहार ,न जो की होती,
गुलिस्ता अभी मेरा रंगीन होता,
वफ़ा मेरा न यु , संगीन   होता।

तलाशता हु मैं  , बेवफा का ठिकाना,
संजोये हुए, बेवफा का, वो मंजर।
करारे वफ़ा है ,
बेकरार ,लिए हाथ में ,
वफ़ा का ये खंजर।

लहू वफ़ा का जम सा गया है ,
तमन्ना दिल का मर सा गया  है ,
न चाहत है तेरी , बस बेचैनीं है ,बस बेचैनीं है।

आफताब ये तेरा, जो साथ है ,
कर्ज बेवफ़ा का,ये रोके हुए है।
नहीं तो उस मंजर ही , कर्ज ,अदा कर देता।
बेवफा का ये जलन ,  दिल में रिसते  हुए ,
शहर दर शहर ,न यु ही , कराहता फिरता, कराहता फिरता।

पिकचु

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