Thursday, February 23, 2017

जाग उठो

भ्रष्ट आचरण ,
भ्रष्ट विचार ,
भात भात के  भ्रष्ट विकार  ,
लील रहा, ये संसार।

भ्रष्ट का साया ,
भ्रष्ट का राज ,
भ्रष्ट का  चक्रव्ह्यु ,
भेद न पाये, कलयुग का  ,
ये भीरु,  अभिमन्यु।

भीतर ,भीतर धधक रहा है ,
भ्रष्ट  ह्रदय में ,
पैशाचिक भ्रमजाल ।

भांति भांति  के रूप लावण्य के ,
ओज से चौंधियाकर ,
भ्रमित मन,निरुत्तर हो ,
सींच रहा है ,क्यों रुग्ण,
अचार, विचार।

विलासिता की आडंबर से,
भरमाये इस निगमित संसार में ,
 मानव कब का  ,भूल गया है,
 समग्र खुमार।

भ्रष्ट वक्त है ,
भ्रम की लीला ,
मदमस्त है दुनिया।

सब खोये है , सब सोये है ,
चकाचौंध की दमक में सारे ।
मन की ज्वाला, भभक रही है ,
बुझने को है, सब्र नहीं अब।

विनती है ,ऐ  दुनियावालो,
वक्त की जंजीरो को तोड़कर ,
जाग उठो,
ऐ  दुनियावालो।

पिकचु

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