भ्रष्ट आचरण ,
भ्रष्ट विचार ,
भात भात के भ्रष्ट विकार ,
लील रहा, ये संसार।
भ्रष्ट का साया ,
भ्रष्ट का राज ,
भ्रष्ट का चक्रव्ह्यु ,
भेद न पाये, कलयुग का ,
ये भीरु, अभिमन्यु।
भीतर ,भीतर धधक रहा है ,
भ्रष्ट ह्रदय में ,
पैशाचिक भ्रमजाल ।
भांति भांति के रूप लावण्य के ,
ओज से चौंधियाकर ,
भ्रमित मन,निरुत्तर हो ,
सींच रहा है ,क्यों रुग्ण,
अचार, विचार।
विलासिता की आडंबर से,
भरमाये इस निगमित संसार में ,
मानव कब का ,भूल गया है,
समग्र खुमार।
भ्रष्ट वक्त है ,
भ्रम की लीला ,
मदमस्त है दुनिया।
सब खोये है , सब सोये है ,
चकाचौंध की दमक में सारे ।
मन की ज्वाला, भभक रही है ,
बुझने को है, सब्र नहीं अब।
विनती है ,ऐ दुनियावालो,
वक्त की जंजीरो को तोड़कर ,
जाग उठो,
ऐ दुनियावालो।
पिकचु
भ्रष्ट विचार ,
भात भात के भ्रष्ट विकार ,
लील रहा, ये संसार।
भ्रष्ट का साया ,
भ्रष्ट का राज ,
भ्रष्ट का चक्रव्ह्यु ,
भेद न पाये, कलयुग का ,
ये भीरु, अभिमन्यु।
भीतर ,भीतर धधक रहा है ,
भ्रष्ट ह्रदय में ,
पैशाचिक भ्रमजाल ।
भांति भांति के रूप लावण्य के ,
ओज से चौंधियाकर ,
भ्रमित मन,निरुत्तर हो ,
सींच रहा है ,क्यों रुग्ण,
अचार, विचार।
विलासिता की आडंबर से,
भरमाये इस निगमित संसार में ,
मानव कब का ,भूल गया है,
समग्र खुमार।
भ्रष्ट वक्त है ,
भ्रम की लीला ,
मदमस्त है दुनिया।
सब खोये है , सब सोये है ,
चकाचौंध की दमक में सारे ।
मन की ज्वाला, भभक रही है ,
बुझने को है, सब्र नहीं अब।
विनती है ,ऐ दुनियावालो,
वक्त की जंजीरो को तोड़कर ,
जाग उठो,
ऐ दुनियावालो।
पिकचु
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