किसी की मजलिस , से तूने जो रौशनी जलाई है , सितम उसके, तेरे ख्वाब उड़ा ले जायेंगे।
घरोंदे का खवाब तेरे साथ देखा था , हक़ीक़त में हमसफ़र तेरा साथ चाहा था।
क्या तेरी बख्त इतनी ही थी की दुनिया के सितम ने तुझे बेवफा बना दिया।
कर इतना मुरवत , साथ न हो पाये , तो अपना हमसाया ही रुखसत कर दे।
याद आती है तो बेचैन हो जाता हु , सोचता हु आप भी बेचैन होंगे ,
क्यों ये गफलत में जी रहा हु मैं , सौदा करके भूलने की फितरत है आपकी।
सोचता हु ये तेरा इश्क़ था या तेरी मजबूरी, ओ मेरे रौशनी ,
या सीढिया दर सीढिया चढ़ने की खावाईश थी तेरी।
आँसमा छूने की खावाईश में इतने ऊपर पहुँच गए आप ,
क्या मेरे जिन्दा रहने का भी ख्याल न था आपको।
लो भूल गए , ऊपर से ही सितमगर गिरते है निचे ,
देखना कही मेरे कब्रे के सामने ही न वो जगह हो।
आपको ये इल्म है, आइनो के दरकने से आवाज नहीं होती ,
इंसान के जिन्दा दफ़नाने से रूह से कोई आवाज नहीं उठती।
बस सादिया दर सादिया मेरे कब्र पर तेरे भटकने की ,
बस अहसास ही होती।
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