Wednesday, September 28, 2016

ओ मेरे रौशनी


किसी की मजलिस , से  तूने जो रौशनी जलाई है , सितम उसके,  तेरे ख्वाब  उड़ा ले जायेंगे।
घरोंदे का खवाब तेरे साथ देखा  था , हक़ीक़त में हमसफ़र तेरा साथ चाहा था।
क्या तेरी बख्त इतनी ही थी की दुनिया के सितम ने तुझे बेवफा बना दिया।
कर इतना मुरवत , साथ न हो पाये , तो अपना हमसाया  ही रुखसत कर दे।

याद आती है तो बेचैन हो जाता हु , सोचता हु आप भी बेचैन होंगे ,
क्यों ये  गफलत में जी रहा हु मैं , सौदा करके भूलने की फितरत है आपकी।

सोचता हु ये तेरा इश्क़ था  या तेरी मजबूरी, ओ मेरे रौशनी ,
या सीढिया दर सीढिया चढ़ने की खावाईश  थी तेरी।

आँसमा छूने की खावाईश  में इतने ऊपर पहुँच  गए आप ,
क्या मेरे जिन्दा रहने का भी ख्याल न था आपको।

लो भूल गए , ऊपर से ही सितमगर गिरते है निचे ,
देखना कही मेरे कब्रे के सामने ही न वो जगह हो।

आपको ये इल्म है,  आइनो के  दरकने से आवाज नहीं होती ,
इंसान के जिन्दा  दफ़नाने से  रूह से कोई  आवाज नहीं उठती।
बस सादिया  दर सादिया मेरे कब्र पर तेरे भटकने की ,
बस अहसास ही होती। 

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