Saturday, September 17, 2016

एक कौआ, एक कबूतर , एक तोता

एक कौआ, एक कबूतर , एक तोता
तीनो ने मिलकर सोचा, क्या सोचा,
इंसान को खाने का सोचा ,

दाने दाने  को है मोहताज ,

कभी बाढ , कभी सूखा कभी इंसानो का बम ब्लास्ट ,

इन सब ने धरती की धार बदल दी,
गुरुत्वाकर्षण की चाल बदल दी ,

सागर , नदिया , धर्म , इंसान ,
ईमान ,हो गई है सदियो की सोच  ,
 हम तो ,''हम तो ,  तीन चिड़या ,
दाने दाने को खाने को है मोहताज।

बच्चा  बैठा देखो रूठा , पर क्या यह भी है सच्चा ,

मानवता की दानवता की छदम चाल में  ,
क्या बच्चा क्या जच्चा क्या  कौआ क्या तोता ,

सब खोकर केवल मैं का  स्वार्थ ले दौड़ पड़े है।

देखे क्या होता है , देखे क्या होता है , बस सोच रहे है । । । । । । । । । ।


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