Thursday, September 15, 2016

प्यास


प्यास

नवजात को है माँ की दूध की प्यास
बच्चे  को है अपनापन और प्यार का आस
किशोर और किशोरियो को शरीर की आग का है एहसास ,
युवावस्था में है है बुलंदियों की छुने  की प्यास।

हर उम्र में है प्यास और एहसास ,
बदलती हुई तस्वीरो में दिखती है
लकीरो की बढ़ने और घटने की तराश।

काश एहसास की ये आस समय के समझ के  साथ  होती हमारे साथ,

न होती ये नदियों का लहू से  लाल होकर  बहने की एहसाश।
काश एहसास की होती प्यास नर और  आदम  में ,
तो जिन्दा रहती जीने की प्यास।
एहसास की बदलती तासीवरो में बस और बस,
अपना स्वार्थ साधने  की है प्यास।
मंदिरो मस्जीदो गुरुद्वारों एवं चर्च में बंट गया है मानव का एहसास।






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