Friday, September 23, 2016

रंग बदलती तस्वीर

रंग बदलती तस्वीरो में सोचा न था , तेरा भी  हमसफ़र नाम होगा ,
प्यार वफ़ा के कालिन्दे , जो  पढ़े  थे साथ , हाथो के लकीरो को लेकर दिल के पास,
क्या   इन   लकीरो के साथ , इतना ही था।

क्यों  हम इतनी दूर निकल आये ,जहाँ  तेरा साथ तो न था ,
न तेरी तन्हाई थी, बस एक आह थी।
क्या यही  आगाज था इस आदिल आदमियत का।

आज  दर्पण  भी आजिज हो , आशना के  आशियाना  के ताक से तर्श  है।

न त -अज्जुब  हुआ , ऐ  कातिल तेरे  वादा खिलाफी  पे ,
गुलजार गुलिस्ता को तुमने , गुमनाम  गजल का बे -कस बना दिया।

ए मेरे फिदाई तेरे फरमान से तूने ,  एक  बेखुद  ,
गुमनाम से  बेजर को बज्म- ए -आलीम  बना दिया।

मेरा कुफ्र है , तूने एक पाकीजा इंसा  को  ,  ईमान का सौदागर  बना दिया ,
ए  मेरी  काजी,   मेरा कत्ल के किस्से  को  जाज़िब लगा तूने अर्श पे उठा दिया।
बस इतना ही चाहत से कहता हु,  तेरी  चश्म ए  जादू को , ज़न्नत  का जनांजा भी न मिल पाए ।




आश्ना=  प्रेमी , आजिज़= उदासीन,   बे कस= अकेला ,   फ़िदाई= प्रेमी,  बे ज़र= निर्धन, कंगाल, बज़्म= सभा, पाकीज़ा= शुद्ध, बे ख़ुद= बेसुध, जाज़िब= मनमोहक, जाज़िब= मनमोहक, आकर्षक ,   चिलमन= चिक,   जन्नत= स्वर्ग, फ़िदाई= प्रेमी, चश्म= आंख 

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