रंग बदलती तस्वीरो में सोचा न था , तेरा भी हमसफ़र नाम होगा ,
प्यार वफ़ा के कालिन्दे , जो पढ़े थे साथ , हाथो के लकीरो को लेकर दिल के पास,
क्या इन लकीरो के साथ , इतना ही था।
क्यों हम इतनी दूर निकल आये ,जहाँ तेरा साथ तो न था ,
न तेरी तन्हाई थी, बस एक आह थी।
क्या यही आगाज था इस आदिल आदमियत का।
आज दर्पण भी आजिज हो , आशना के आशियाना के ताक से तर्श है।
न त -अज्जुब हुआ , ऐ कातिल तेरे वादा खिलाफी पे ,
गुलजार गुलिस्ता को तुमने , गुमनाम गजल का बे -कस बना दिया।
ए मेरे फिदाई तेरे फरमान से तूने , एक बेखुद ,
गुमनाम से बेजर को बज्म- ए -आलीम बना दिया।
मेरा कुफ्र है , तूने एक पाकीजा इंसा को , ईमान का सौदागर बना दिया ,
ए मेरी काजी, मेरा कत्ल के किस्से को जाज़िब लगा तूने अर्श पे उठा दिया।
बस इतना ही चाहत से कहता हु, तेरी चश्म ए जादू को , ज़न्नत का जनांजा भी न मिल पाए ।
आश्ना= प्रेमी , आजिज़= उदासीन, बे कस= अकेला , फ़िदाई= प्रेमी, बे ज़र= निर्धन, कंगाल, बज़्म= सभा, पाकीज़ा= शुद्ध, बे ख़ुद= बेसुध, जाज़िब= मनमोहक, जाज़िब= मनमोहक, आकर्षक , चिलमन= चिक, जन्नत= स्वर्ग, फ़िदाई= प्रेमी, चश्म= आंख
प्यार वफ़ा के कालिन्दे , जो पढ़े थे साथ , हाथो के लकीरो को लेकर दिल के पास,
क्या इन लकीरो के साथ , इतना ही था।
क्यों हम इतनी दूर निकल आये ,जहाँ तेरा साथ तो न था ,
न तेरी तन्हाई थी, बस एक आह थी।
क्या यही आगाज था इस आदिल आदमियत का।
आज दर्पण भी आजिज हो , आशना के आशियाना के ताक से तर्श है।
न त -अज्जुब हुआ , ऐ कातिल तेरे वादा खिलाफी पे ,
गुलजार गुलिस्ता को तुमने , गुमनाम गजल का बे -कस बना दिया।
ए मेरे फिदाई तेरे फरमान से तूने , एक बेखुद ,
गुमनाम से बेजर को बज्म- ए -आलीम बना दिया।
मेरा कुफ्र है , तूने एक पाकीजा इंसा को , ईमान का सौदागर बना दिया ,
ए मेरी काजी, मेरा कत्ल के किस्से को जाज़िब लगा तूने अर्श पे उठा दिया।
बस इतना ही चाहत से कहता हु, तेरी चश्म ए जादू को , ज़न्नत का जनांजा भी न मिल पाए ।
आश्ना= प्रेमी , आजिज़= उदासीन, बे कस= अकेला , फ़िदाई= प्रेमी, बे ज़र= निर्धन, कंगाल, बज़्म= सभा, पाकीज़ा= शुद्ध, बे ख़ुद= बेसुध, जाज़िब= मनमोहक, जाज़िब= मनमोहक, आकर्षक , चिलमन= चिक, जन्नत= स्वर्ग, फ़िदाई= प्रेमी, चश्म= आंख
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