Sunday, September 18, 2016

पूंजीवाद की माया

न कमाया तो क्या माया , न गवांया तो क्या  माया ,
न सोया तो क्या खोया , न पाया तो क्यों रोया।
न देखा तो क्यों पछताया , अब पछताया तो क्या पाया ,
न पढ़ा तो क्या पाया , न पढ़ाया तो क्या पाया।

न वंशवाद में क्या पाया , न प्रजावाद में क्या पाया ,
न मूल्यों के ह्राष में क्या पाया , न टूटते हुए रिस्तो में क्या पाया।

न में मेरी आपने मेरी नाकारात्मता  पाया , ये  सोचा आपने।
न देखा आपने इस दौड़ में , न कितनो को खो दिया आपने।

न लहू का रंग लाल रहा, न तो कोई ऐसा माइ का लाल रहा
न की खेल में, न पुराने ही रहे, न नए हो पाए ,
न प्रजातंत्र हो पाया, न समाजवाद  हो पाया।
 
हाँ हम खो गए इस पूंजीवाद की  माया में जिसने
व्यक्ति , समाज , देश , दुनिया को ऐसा भरमाया है ,
न राम रहे , न रहीम रहे , न गुरुनानक रहे , न क्राइस्ट रहे ,
बस डोनाल्ड , मैकडोनाल्ड , ट्रम्प और बस व्यापार रहे।


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