Tuesday, September 20, 2016

हमने भी गालीब , इक़बाल बनने की कोशिश की

हमने भी गालीब  , इक़बाल  बनने की कोशिश की ,
इनके पदचिन्हो पर कभी चलने की कोशिश  की।

कमबख्त हाथ में बोतल था ,और  बस उसका सोच था ,
निकल पड़े उनके ख्याल खमाली में।

सोचा न होश कहा था , मदहोश से तीन प्याली में ,
सामने से कुकूर आ रहा था , सोचा किधर जाऊँ ,
बाये जाऊँ की दाये जाऊँ , इसी उहापोह में था ,
कुकूर ने भी भांप लिया , वह  बाये गया न दाये
बस    आक्रोशित हो सीधे ही  आक्रमण किया।

कही रैबीज न हो जाये , अब तो सिर्फ कूकर का ही ख्याल था ,
क्या करे न करे  इसी डर से  हम बेहोश हो चले।

मेरे दोस्त कभी भी अपनी  गम ख्याली न करना ,
तोहमत  कुफ्र के तुम ही भुक्त भोगी  होंगे।

ग़ालिब या इक़बाल  का क्या होगा , ये तो अपना  मुकाम
लिख कर  चमन  के  फ़ाज़िल आफ़ताबी है।
हम तो बस इनकी शोबहत के दीदार के काहिल है।  

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