विकास की यात्रा पर हम क्या चले ,
अपने ही अपने रास्ते रास्ते से दूर हो चले।
क्या आदिवासी , क्या दलित , क्या सामान्य ,
सब खुद में ही अपनी खोखली चोंचले में जी चले।
वक्त आया जब , लड़ने लगे , काटने लगे ,
क्या यही सोच ले चले हम, आने वाले सदियो में।
पता नहीं पर पता है विकास की सह- मात की यात्रा में ,
मित्रो , मेरे भाइयो , मेरे देश वासियो सब कुछ खो चले हम।
विकास की यात्रा पर हम क्या चले ,
अपने ही अपने रास्ते रास्ते से दूर हो चले।
अपने ही अपने रास्ते रास्ते से दूर हो चले।
क्या आदिवासी , क्या दलित , क्या सामान्य ,
सब खुद में ही अपनी खोखली चोंचले में जी चले।
वक्त आया जब , लड़ने लगे , काटने लगे ,
क्या यही सोच ले चले हम, आने वाले सदियो में।
पता नहीं पर पता है विकास की सह- मात की यात्रा में ,
मित्रो , मेरे भाइयो , मेरे देश वासियो सब कुछ खो चले हम।
विकास की यात्रा पर हम क्या चले ,
अपने ही अपने रास्ते रास्ते से दूर हो चले।
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